About Astrologer

Parkash Dutt

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    Parkash Dutt, Astrologer in Ludhiana

I would like to say only that  Astrology knowledge has given me a lot of things in my life. In my young age when my father used to predict, I didn't took it so seriousely. But when I observed that my life was exactly on the same track as predicted by respected fater late Sh.Krishan Dev Dutt, I started to give my serious attention to Astrology Study. I applied the remedies suggested by my father which made my life easy, progressive and peacfull. Now when I am of 47 years age, having 25 years experience of Astrology, I strongly say "ASTROLOGY PLAYS GREAT ROLE IN OUR LIFE". Persons who don't belive in it, instead of to make argue with them, I would llike to spend my time on more research in Astrology. 

Vedic Astrology is the language of stars that speaks to us, warns us, gives hint to us. The only thing is to be needed, we should understand it and  follow the messages of silient stars which says "WE ARE THE MILESTONES OF YOUR LIFE'S ROAD". Stars Say that follow our hints and achieve the uncountable targets of life that may be of becoming rich, popular, healthy, wealthy etc. 

 

I CAN SAY ONE THING VERY CONFIDENTLY THAT IF YOU ARE SERIOUS ABOUT ASTROLOGY AND THE ASTROLOGER FOR YOU IS FULL OF KNOWLEDGE AND EXPERIENCE no one can stop you from making progress in your life.

I honestly say I never planned to become an Astrologer in my life. Your love and faith made me Astrologer. I just simply predict and provide the solutions according to your stars.

साल 2005
बात उन दिनों की है जब मैं अपने साधनाकाल के दौरान अक्सर देश के विभिन्न क्षेत्रो में जाकर योग्य सिद्ध पुरुषो से मिला करता था।  मंशा एक ही थी, ज्यादा से जयादा ज्ञान अर्जित करना जिससे  मैं ज्यादा से ज्यादा जन  कल्याण कर सकू । मुझसे जुड़े मेरे पुराने साधक या क्लाइंट्स जानते है कि मैंने आज से दस वर्ष पूर्व एक शिव यन्त्र बनाया था जिसकी युक्ति मुझे एक ऐसे साधू ने दी थी जो मुझे खीर गंगा (मनीकरण) से आगे के पहाड़ी क्षेत्र में मिले थे ।

ये खीर गंगा का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ आज भी कुछ ऐसे साधु सन्यासी रहते है जो अपनी उच्च कोटि की साधना के कारण पूजनीय है । इसमें कोई शक नहीं पाखंडी लोग हर जगह डेरा जमा लेते है । यहाँ पर भी बहुत सारे तथाकथित साधु सन्यासी घूम रहे है जो इस धरा पर कलंक है । चंद पैसो के लिए विदेशिओं के तलवे चाटते है ।

मेरी इसी भ्रमण की श्रृंखला में साल 2005 में मेरी मुलाकात खीर गंगा के ही क्षेत्र में एक ऐसे सन्यासी से हुई जो मनोकामना पूर्ति विद्द्या में पारंगत थे । मैंने उनके समक्ष इस साधना को संपन्न करने की इच्छा जाहिर की तो उस समय उन्होंने मुझे कुछ निर्देश देकर बाद में मिलने को कहा था ।

साल 2009
वक्त गुजरा और मैं लगभग इस बात को भूल ही गया । लेकिन तपस्वी लोग कभी अपने वचन को मिथ्या नहीं जाने देते। अचानक साल 2009 नवंबर में परिस्थितिया कुछ ऐसी बनी कि मन में वैरागय सा आ गया | दिन रात ध्यान साधना में रत रहने लगा । अपने मोबाइल्स भी स्विच ऑफ कर दिए । क्लाइंट्स और साधक शिष्यों से भी कोई संपर्क नहीं रख पाया । जो भी घर या ऑफिस आता उनको एक ही जवाब था आचार्य जी नहीं मिल सकते अगले महीने संपर्क करे ।
इन दिनों मझे एक विशेष सा अनुभव हुआ । वही खीर गंगा वाले सन्यासी मेरे ध्यान में अक्सर एक  आने लगे। जो लोग ध्यान करते है उनको भली भांति पता होगा कि ध्यान की गहन अवस्था में अक्सर पुण्य आत्माए सिद्ध पुरुष ध्यानकर्ता  का मार्गदर्शन करने के लिए लालयात रहते है । जब मेरे संपर्क में ये सन्यासी लगातार आने लगे तो मुझे लगा कि कुछ अवश्य विशेष कारण होगा जो ये मुझसे संपर्क साध रहे है ।
ये महामाया का चक्र ही था उसने मेरे मन में वैराग्य  ला कर इस कदर ध्यान में रत कर दिया कि इधर मैं इस योग्य हो गया कि मनोकामना पूर्ती साधना संपन्न कर सकु और उधर उस तपस्वी सन्यासी जी ने मेरे ध्यान में आकर मुझसे संपर्क साधना शुरू कर दिया।
मैंने विशेष रूप से उन पर ध्यान केंद्रित किया और मुझे ये समझते तनिक देर नहीं लगी कि ये तपस्वी  पुरुष मुझसे किसी विशेस कार्य की पूर्ति के लिए संपर्क साध रहे  है ।
दरअसल जब 2005  में जब मैं इनसे मिला था तो इनसे मैंने मनोकामना पूर्ति यन्त्र बनाने की विधि जानने की इच्छा जाहिर की थी| लगभग दस दिनों तक इन्होने मुझे ध्यान की कुछ विशेष विधिओ का अभ्यास करवाया था।  तब मेरा ध्यान का अभ्यास उस सीमा तक नहीं था जिससे आज्ञा चक्र में वो शक्ति आ पाये कि मैं इस यन्त्र को पूर्ण रूप से शक्तिशाली बना पाऊ| इस यन्त्र को बनाने के लिए मंत्र विद्या के साथ साथ आज्ञा चक्र से कुछ विशेष क्रियाओ द्वारा इस यन्त्र को शक्तिपात किया जाता है ताकि ये यंत्र  इतना शक्तिशाली हो जाये कि भले ही जन्म कुंडली में योग हो या नो  हो, ये यन्त्र  आपकी इच्छा पूरी कर दे । तब इन्होने कहा था कि दत्त पंडित ( ये मुझे इसी नाम से बुलाते थे ) जिस दिन तुम निश्चित मापदंड पूरा कर लोगे मैं तुमको ये साधना दे दूंगा । मेरे चेहरे पर कुछ दुविधा के भाव पढ़कर उन्होंने कहा कि  निश्चिन्त रहो दत्त पंडित इस दुनिया से रुखसत होने से पहले तुमको ये साधना अवश्य दे दूंगा ।
दिसंबर 2009 में इनसे मिलने के लिए फिर से खीर गंगा के क्षेत्र में गया लेकिन इनका कुछ अता पता नहीं चला । ध्यान में दोबारा संपर्क साधने की कोशिश की कुछ नजर नहीं आया । पूरा दिसंबर महीना कहा कहा नहीं तलाश की । मनिकरण, मनाली, रोहतांग, अनेको अनजान पहाड़ी क्षेत्र, ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार जहा जहा भी संभावना थी तलाश किया । लेकिन इनसे भेट नहीं हो सकी । मैं  दिसंबर 2009 के आखिरी हफ्ते घर आ गया ।
अचानक 30 दिसंबर 2009 को मेरे एक शिष्य ने कहा कि सर (सभी मुझे सर ही कहते है वैसे भी मुझे गुरु जी कहलवाना अच्छा नहीं लगता ) 31 तारीख को खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण है और मैं चाहता हूँ कि आप मुझे अप्सरा साधना करवा दे ।  पता नहीं क्यों मैं उसका अनुरोध ठुकरा नहीं पाया हालाँकि मन में तनिक भी इच्छा नहीं थी कुछ करने की । 20-21 दिनों की सफर की थकान और सन्यासी जी को ना ढूंढ पाने का दुःख । मन और शरीर दोनों तरफ से थकान महसूस कर रहा था । अनजाने मन से मैंने अपने शिष्य को बोल दिया कि ठीक है कल यानि 31 को तुम मुझे हरिद्वार के गंगा घाट पर रात्रि 10 बजे मिलना ।
ठीक रात्रि 10 बजे मेरा शिष्य मुझसे मिला और मैंने उसे दीक्षा देकर साधना वाले स्थान पर बिठा दिया और खुद गंगा घाट पर बैठकर नदी की लहरो को देखने लग गया । सर्दी काफी थी । रात्रि के 1 बज चुके थे । कुछ मित्रो के फ़ोन पर नव वर्ष की शुभकामनाओ के संदेश आये तो कुछ ने फ़ोन पर वधाई दी । बैटरी खत्म और फ़ोन भी स्विच ऑफ हो गया । ठण्ड के मारे गर्दन में दर्द होने लगा । मफलर भी बेकार सिद्ध हो रहा था । लेकिन दिल नही था वापिस जाने को । रात्रि के दो बजे मेरे कंधे पर हाथ रखा किसी ने और कहा लो पंडित जी चाय पी लो गर्मागर्म । हैरानी हुई इतनी रात्रि को जबकि इक्का दुक्का लोगो को छोड़कर पूरा घाट खाली है ये कौन है जो मेरे लिए चाय लेकर आया है । पीछे मुड़कर देखा तो मेरी हैरानी की सीमा नहीं रही। मुस्कराते हुए सन्यासी जी खड़े थे हाथ में दो मिटटी के बर्तनो में गर्मागर्म  चाय लिए । इससे पहले कि मै कुछ कहता उन्होंने कहा मुहूर्त निकल जायेगा चाय ख़त्म करो और चलो मेरे साथ ।

तीन दिन के कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने ने मुझे मनोकामना पूर्ती विद्या से आत्मसात करवा दिया । और मुझे घर वापिस जाने का निर्देश देकर अपने शरीर को चिर समाधी देने के लिए किसी अज्ञात स्थान पर चले गए । कुछ ही दिनों बाद मुझे ये आभास हो गया कि अब ये पुण्य आत्मा इस धरा के आवागमन के चक्र से मुक्त हो चुकी है । मन को पीड़ा तो हुई पर मुझे इस बात का संतोष भी है कि वो आज भी मेरे साथ है उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के रूप में ।

प्रिय बंधुओ ये यन्त्र अपने आप में एक वरदान है जो आपके जीवन की बड़ी से बड़ी अभिलाषा को पूरी कर सकने में सक्षम है । वैसे तो इच्छाए अनेक होती है जीवन में, किसी को धनवान बनने की, तो किसी को यश प्राप्ति की, कोई पुत्र चाहता है तो कोई पुत्र के आचरण से दुखी, कोई विदेश जाना चाहता है, तो कोई वतन वापसी यानि कि इच्छाओ का अंत नहीं है ।

मेरा एक सुझाव है कि आप इस यन्त्र को इस प्रकार इस्तेमाल करे:   

अपना भला मांगे
दुसरो का भला मांगे
प्रकृति को संतुलित रखने की प्रार्थना करे ।
फिर स्वस्थ शरीर की कामना करे
परमात्मा में ध्यान की गहराई मांगे
नोट: कोई भी अनैतिक इच्छा न करे ऐसा करने पर ये यन्त्र काम नहीं करेगा
यन्त्र शुल्क : 3100/- डाक व्यय अतिरिक्त


ईश्वर सभी की सद्इच्छाए पूर्ण करे

आचार्य प्रकाश दत्त
दिनांक 5-1-2009

नोट: आप खुद भी मनोकामना पूर्ति साधना संपन्न करके अपना और दूसरो का भला कर सकते है ।  दीक्षा के लिए आप आचार्य जी से सीधे संपर्क करे ।